Thursday, September 6, 2012

भारत और यूरोपीय संघ के बीच द्विपक्षीय व्यापार और निवेश समझौता

वाणिज्य पर विशेष लेख                                                                                             अमित गुईन*  
                                                                                                                                                                                साभार चित्र 
एक समय था जब भारत और यूरोपीय संघ के बीच व्यापारिक वस्तुओं का द्विपक्षीय व्यापार 40 बिलियन यूरो का था। उस समय भारत ने यूरोपीय संघ को 3.8 बिलियन यूरो मूल्य की सेवाओं का निर्यात किया और यूरोपीय संघ भारत का विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का सबसे बड़ा स्रोत था। संक्षेप में कहा जा सकता है कि जब दोनों के बीच द्विपक्षीय व्यापार और निवेश के स्वस्थ रूझान थे, उस समय सन् 2005 में दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश को और बढ़ावा देने के उपाय तलाशने के लिए भारत-यूरोपीय शिखर सम्मेलन का एक उच्च स्तरीय व्यापार समूह (एचएलटीजी) गठित किया गया। एचएलटीजी द्वारा गंभीर चर्चा के जरिए विभिन्न मंचों पर विचार किया गया। चर्चा के दौरान इस बात पर आम सहमति हुई कि व्यापार में गैर-टैरिफ बाधाओं को दूर करने के बाद ही सुदृढ़ व्यापार संबंधों का स्वप्न पूरा किया जा सकता है। अत: इस बात की सिफारिश की गई कि विस्तारित व्यापार संबंधों का व्यापक मंच, द्विपक्षीय व्यापार और निवेश समझौते (बीटीआईए) के जरिए तैयार किया जाए। भारत और यूरोपीय संघ के बीच बीटीआईए वार्ताओं में तब से व्यापारिक वस्तुओं और सेवाओं, सैनिटरी और फाइटो-सैनिटरी उपाय, बौद्धिक संपदा अधिकार, व्यापार में आने वाली तकनीकी बाधाएं, विवाद निपटान, सीमा शुल्क, व्यापारिक सुविधाएं और वसूली आदि संबंधित मामलों पर विचार किया गया।

लेकिन बीटीआईए के लिए जून, 2007 में शुरू हुई बातचीत के समय से अब तक दोनों भारत और यूरोपीय संघ के लिए आर्थिक परिदृश्य खराब और धुंधला पड़ गया है। यूरोपीय क्षेत्र की अर्थव्यवस्था के 2012 में 0.3 प्रतिशत कमजोर पड़ने और चालू वर्ष के लिए सभी 27 सदस्य देशों के लिए शून्य विकास तथा आने वाले वर्ष के लिए 1.3 प्रतिशत के विकास की भविष्यवाणी को देखते हुए यूरोपीय संघ के लिए परिदृश्य निराशाजनक है। इसके विपरीत, भारत की अर्थव्यवस्था के 6-7 प्रतिशत बढ़ने की अपेक्षा है जो कि 9 प्रतिशत के मानक से बहुत कम है। इस प्रकार, इस परिदृश्य में जब वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी के दौर में चल रही है, बीटीआईए उनकी स्थिति को बेहतर बना सकता है और दोनों घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खोए विश्वास को फिर प्राप्त करने में सहायक हो सकता है।

उल्लेखनीय है कि भारत और यूरोपीय संघ के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2011-12 में 109.87 बिलियन अमरीकी डालर का हुआ जबकि 2010-11 में यह 90.62 अमरीकी डालर था। भारत-यूरोपीय संघ बीटीआईए इस कारण श्रेष्ठ है कि उसके द्वारा द्विपक्षीय व्यापार को वर्ष 2015 तक 150 बिलियन यूरो तक ले जाने की आशा है। इसके अलावा, यह समझौता द्विपक्षीय व्यापार के 90 प्रतिशत से अधिक शुल्क को समाप्त कर देगा। यह व्यापार समझौता नौकरियों के अधिक अवसर पैदा करने में सहायता करने के अलावा यूरोपीय संघ को एशिया के वाणिज्यिक जगत में अपनी बात रख सकने का अवसर प्रदान करेगा।

लेकिन आगे का रास्ता इतना आसान नहीं है जितना दिखाई देता है। समझौते को सफल बनाने के लिए संबद्ध देशों को अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है। भारत की चिंता का एक बड़ा मामला मोड-4 के लिए शुरू की गई सुरक्षा धारा है जो इससे अपेक्षित लाभों को काफी मात्रा में निरस्त कर देगी। मोड-4 से तात्पर्य है - एक सदस्य देश के नागरिकों द्वारा सेवाओं की आपूर्ति, जो अन्य सदस्य देशों के क्षेत्र में उस देश के स्वाभाविक नागरिकों द्वारा की जाती है। इस कारण, भारत ने मोड-4 के अधीन सेवाएं प्रदान करने के लिए स्वाभाविक नागरिकों के आने-जाने की स्वतंत्रता मांगी है और कहा है कि सुरक्षा धारा को 20 प्रतिशत तक हटा दिया जाए। इसके साथ-साथ मोड-1 (सीमापारिय व्यापार) में भारत को आंकड़ा सुरक्षित के रूप में घोषित करने की आवश्यकता है ताकि उसके नगारिकों की पहुंच आसान हो सके। बोस्टन सलाहकार समूह द्वारा किए गए अध्ययन से भारत में 2020 तक 6 मिलियन से अधिक नौकरियों और 170 बिलियन अमरीकी डालर मूल्य का राजस्व अर्जित होने की आशा है।

अन्य बाधा आटोमोबाइल, शराब और स्प्रिट पर शुल्क में कमी है। आटोमोबाइल क्षेत्र में यूरोपीय संघ ने टैरिफ में वर्तमान 60 प्रतिशत में कटौती करने की मांग की है। जहां तक शराब और स्प्रिट का मामला है यूरोपीय संघ मौजूदा 150 प्रतिशत टैरिफ में और कमी करने की अपेक्षा करता है। इसके वास्ते सभी के लिए स्वीकार्य शुल्क कटौती के जरिए बीच का रास्ता तलाशा जा सकता है।

भारत ने भी सैनिटरी और फाइटो-सैनिटरी (एसपीएस), व्यापार के प्रति तकनीकी बाधाएं (टीबीटी) और गैर-टैरिफ बाधाएं (एनटीबी) के बारे में अपनी चिंताएं व्यक्त की हैं। आर्थिक विकास के स्तरों को ध्यान में रखते हुए भारत ने यूरोपीय संघ से टैरिफ लाइनों पर कम से कम अन्य 5 प्रतिशत और भारत द्वारा किए जाने वाले व्यापार के विस्तार में और 5 प्रतिशत टैरिफ समाप्त करने को कहा है। यह भारत के लिए शुल्क समाप्ति/कटौती के कारण राजस्व में होने वाली कटौती को कम करने में सहायक होगा। लेकिन यूरोपीय संघ ने 4 प्रतिशत से अधिक असममिति (Asymmetry) प्राप्त करने में कठिनाइयां व्यक्त की हैं। भारत ने एनटीबी समाप्त करने की मांग की है, क्योंकि उसकी राय है कि मात्र टैरिफ में कमी करने से व्यापार बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त नहीं होगा। इसके साथ-साथ भारत ने कहा है कि यूरोपीय संघ के एसपीएस उपायों के कारण उसके निर्यात में बाधा आई है, जिसका कृषि और खाद्य उत्पादों के निर्यात पर असर पडा है। इससे कुल मिलाकर औद्योगिक उत्पादों का निर्यात प्रभावित हुआ है। भारत की राय है कि एसपीएस और टीबीटी के जोरदार उपायों से एक ढांचा तैयार करने में सहायता मिलेगी जो भारतीय निर्यातकों के सामने एनटीबी के कारणों का पता लगाएगा और एक-दूसरे के न्यायोचित जन-नीति उद्देश्यों का भी सम्मान होगा।

भारत-यूरोपीय संघ के एफटीए ने भारत के भेषज उद्योग पर भी असर डाला है। यह सुज्ञात है कि भारतीय भेषज उद्योग विश्व व्यापार संगठन के अंतर्गत बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं की सहायता करता है। लेकिन यूरोपीय संघ ने अब भारत से कहा है कि वह ट्रिप्स के अधीन बौद्धिक संपदा संरक्षण मानकों से कहीं अधिक मानकों को अपनाए। भारत ने यूरोपीय संघ को स्पष्ट कर दिया है कि भारत किसी समझौते को उसके वर्तमान कानूनों और ट्रिप्स के अधीन दायित्वों तक ही सीमित रखेगा।

समझौता वार्ता जो ब्रसल्स में 28 जून, 2007 को शुरू हुई और व्यापार तथा आर्थिक संबंध समिति से प्राप्त आदेशों के अनुसार जारी रखी गई, कुल मिलाकर 14 बार आयोजित की गई। इन चर्चाओं के अलावा दोनों पक्षों के अधिकारी समस्याओं के निदान के लिए निरंतर क्षेत्र विशेष अंतर-सत्रीय, डिजिटल वीडियो सम्मेलनों में व्यस्त रहे हैं। साथ ही, भारत और यूरोपीय संघ व्यापार तथा वाणिज्य से संबंधित समकालीन मामलों पर विचार करने के लिए भारत-यूरोपीय संघ संयुक्त आयोग और उसके व्यापार, आर्थिक सहयोग तथा विकास सहयोग संबंधी उप-आयोगों के जरिए मिलते रहे हैं। (पीआईबी)                                                         
{06-सितम्बर-2012 15:14 IST}
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*लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं
नोट- इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और जरूरी नहीं कि वे पत्र सूचना कार्यालय के विचारों को प्रतिबिंबित करें।

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